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न तम॑श्नोति॒ कश्च॒न दि॒व इ॑व॒ सान्वा॒रभ॑म् । सा॒व॒र्ण्यस्य॒ दक्षि॑णा॒ वि सिन्धु॑रिव पप्रथे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

na tam aśnoti kaś cana diva iva sānv ārabham | sāvarṇyasya dakṣiṇā vi sindhur iva paprathe ||

पद पाठ

न । तम् । अ॒श्नो॒ति॒ । कः । च॒न । दि॒वःऽइ॑व । सानु॑ । आ॒ऽरभ॑म् । सा॒व॒र्ण्यस्य॑ । दक्षि॑णा । वि । सिन्धुः॑ऽइव । प॒प्र॒थे॒ ॥ १०.६२.९

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:62» मन्त्र:9 | अष्टक:8» अध्याय:2» वर्ग:2» मन्त्र:4 | मण्डल:10» अनुवाक:5» मन्त्र:9


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (तं कः-चन न-अश्नोति) उस ज्ञानदाता को कोई भी धनान्न का दाता नहीं पा सकता (दिवः-इव सानु-आरभम्) जैसे द्युलोक के सम्भजनीय उच्चस्थित सूर्य को पाने में समर्थ नहीं होता (सावर्ण्यस्य दक्षिणा) समान वर्ण में समान भरण पालन में कुशल का दान (सिन्धुः-इव पप्रथे) नदी के समान विस्तृत-व्याख्यात होता है ॥९॥
भावार्थभाषाः - धन या अन्नदान से बढ़ कर ज्ञानदान है, उसका दाता उच्च स्थति को प्राप्त होता हुआ सूर्य के समान उत्कृष्ट है तथा नदी की भाँति उदार होता है, प्रसिद्ध होता है ॥९॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (तं कः-चन न अश्नोति) तं ज्ञानदातारं कश्चन धनान्नदाता न व्याप्नोति-न-प्राप्नोति “अश्नोति व्याप्नोति व्यत्ययेन परस्मैपदम्” [ऋ० १।९४।२ दयानन्दः] (दिवः-इव सानु-आरभम्] यथा द्युलोकस्य सम्भजनीयमुच्चस्थितं सूर्यमारब्धुं न पारयति (सावर्ण्यस्य दक्षिणा) समानवर्णे समानभरणे कुशलस्य “वृ वरणे भरणे-इत्येके” [क्र्यादि०] दानं (सिन्धुः-इव पप्रथे) नदीवत् खलु विस्तृतो व्याख्यातो भवति ॥९॥